चित्रगुप्तजी का इतिहास

कैसे पड़ा नाम
भगवान को चित्रगुप्त के नाम से पहचाने जाने के पीछे भी पुराणों में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। एक कथा में बताया गया है कि महाप्रलय के पश्चात् सृष्टि की पुर्नरचना की जानी थी। भगवान ब्रह्मा तपस्या में लीन थे। करीब हजारों वर्षों की तपस्या के दौरान उनके स्मृति पटल पर एक चित्र अंकित हुआ और गुप्त हो गया। भगवान के मुख से निकल पड़ा चित्रगुप्त कायस्थ। अर्थात जो चित्र गुप्त हो और मन में स्थित हो। इसके पश्चात् जब उनकी तंद्रा टूटी तो सामने दीव्यपुरूष खडे़ थे। इन्हें ही चित्रगुप्त नाम दिया गया। ब्रह्मा जी ने दीव्यपुरूष को महाकाल नगरी में जाकर तपस्या करने को कहा। ये दीव्य पुरूष उज्जैन आए और घोर तप किया। जिसके प्रभाव से सृष्टि के प्रत्येक प्राणि के कर्मों का लेखा - जोखा रखने की शक्ति चित्रगुप्त को प्राप्त हो पाई। इन्होंने मानव कल्याण के लिए शक्तियाँ अर्जित कीं।
भगवान का विशेष पूजन
चित्रगुप्त भगवान का पूजन विशेषतौर पर कार्तिक शुक्ल द्वितीया व चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की द्वितीया को किया जाता है। दीपावली के पश्चात् द्वितीया तिथि पर मनाई जाने वाली भाईदूज पर भी इनका महत्व होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन धर्मराज अपनी बहन से मिलने उसके घर पहुँचते हैं।

चित्रगुप्त धाम से जुडी जानकारी

नगर के अतिप्राचीन अंकपात क्षेत्र की यमुना तलाई में विराजित भगवान चित्रगुप्त का मंदिर देखने में जितना मनोरम और अद्भुत है उतना ही पौराणिक भी है। जहाँ एक ओर चित्रगुप्त जी के एक हाथ में कर्मों की पुस्तक है वहीं दूसरे हाथ से वे कर्मों का लेखा - जोखा करते दिखलाई पड़ते हैं। इनके हाथ में तलवार भी सुशोभित है। मंदिर में प्रतिष्ठापित मूर्ति के साथ भगवान की दोनों पत्नियाँ इरावति और नंदिनी भी विराजित हैं। जो कि श्री भगवान के कार्यों में योगदान भी देती हैं। इसके अलावा समीप ही धर्मराज की चतुर्भुज मूर्ति भी अत्यंत दुर्लभ हैं। जिसमें भगवान के एक हाथ मंे अमृत कलश, और दो हाथों  में शस्त्र दर्शाया गया है। धर्मराज भी लोगों को आर्शीवाद देकर धर्म के अनुसार आचरण करने की प्रेरणा देते हैं। धर्मराज की मूर्ति के ठीक समीप दोनों ओर उनके दूतों की मूर्तियाँ भी विराजित हैं। धर्मराज की मूर्ति के उपर ब्रह्म, विष्णु और महेश की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं।
ठीक होते हैं रोग
मान्यता के अनुसार मंदिर परिसर स्थित यमुना तलाई के जल के सेवन और यहाँ की जलवायु में विचरण करने से लकवे जैसे रोग तक ठीक हो जाते हैं। वर्तमान में भी कई ऐसे उदाहरण देखे गए हैं जिनके रोग यहाँ आकर ठीक हो गए हैं।
फिर हुई पुर्नस्थापना
कालांतर में श्री चित्र्रगुप्त मंदिर सार्वजनिक न्यास का गठन किया गया। न्यास द्वारा मंदिर के जीर्णोद्धार व नवीन मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हेतु प्रयास किए गए। 12 जून 1994 के दिन मंदिर परिसर में नवीन मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई। अभा कायस्थ महासभा द्वारा इस स्थल को श्री चित्रगुप्त धाम के रूप में पहचाना जाता है।
मान्यता है कि मंदिर में केवल कागज, कलम और दवात चढ़ाते ही आपकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। यदि कोई भाग्यहीन हो और अभाव में जीवन जी रहा हो तो उसका भाग्य महज दर्शनों से ही बदल जाता  है। ऐसी महिमा इस पौराणिक नगरी में वर्षों तक तपस्या कर ज्ञान प्राप्त करने वाले भगवान चित्रगुप्त के अलावा किसकी नहीं हो सकती।

पता

श्री चित्रगुप्त धाम ,अन्कपात ,उज्जैन

फ़ोन : 0734-2555302
E-mail: chitraguptdham@gmail.com

आयोजन