चित्रगुप्त धाम जानकारी
नगर के अतिप्राचीन अंकपात क्षेत्र की यमुना तलाई में विराजित भगवान चित्रगुप्त का मंदिर देखने में जितना मनोरम और अद्भुत है उतना ही पौराणिक भी है। जहाँ एक ओर चित्रगुप्त जी के एक हाथ में कर्मों की पुस्तक है वहीं दूसरे हाथ से वे कर्मों का लेखा - जोखा करते दिखलाई पड़ते हैं। इनके हाथ में तलवार भी सुशोभित है। मंदिर में प्रतिष्ठापित मूर्ति के साथ भगवान की दोनों पत्नियाँ इरावति और नंदिनी भी विराजित हैं। जो कि श्री भगवान के कार्यों में योगदान भी देती हैं। इसके अलावा समीप ही धर्मराज की चतुर्भुज मूर्ति भी अत्यंत दुर्लभ हैं। जिसमें भगवान के एक हाथ मंे अमृत कलश, और दो हाथों में शस्त्र दर्शाया गया है। धर्मराज भी लोगों को आर्शीवाद देकर धर्म के अनुसार आचरण करने की प्रेरणा देते हैं। धर्मराज की मूर्ति के ठीक समीप दोनों ओर उनके दूतों की मूर्तियाँ भी विराजित हैं। धर्मराज की मूर्ति के उपर ब्रह्म, विष्णु और महेश की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं।
ठीक होते हैं रोग
मान्यता के अनुसार मंदिर परिसर स्थित यमुना तलाई के जल के सेवन और यहाँ की जलवायु में विचरण करने से लकवे जैसे रोग तक ठीक हो जाते हैं। वर्तमान में भी कई ऐसे उदाहरण देखे गए हैं जिनके रोग यहाँ आकर ठीक हो गए हैं।
फिर हुई पुर्नस्थापना
कालांतर में श्री चित्र्रगुप्त मंदिर सार्वजनिक न्यास का गठन किया गया। न्यास द्वारा मंदिर के जीर्णोद्धार व नवीन मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हेतु प्रयास किए गए। 12 जून 1994 के दिन मंदिर परिसर में नवीन मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई। अभा कायस्थ महासभा द्वारा इस स्थल को श्री चित्रगुप्त धाम के रूप में पहचाना जाता है।
मान्यता है कि मंदिर में केवल कागज, कलम और दवात चढ़ाते ही आपकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। यदि कोई भाग्यहीन हो और अभाव में जीवन जी रहा हो तो उसका भाग्य महज दर्शनों से ही बदल जाता है। ऐसी महिमा इस पौराणिक नगरी में वर्षों तक तपस्या कर ज्ञान प्राप्त करने वाले भगवान चित्रगुप्त के अलावा किसकी नहीं हो सकती।
अपील:
भगवान चित्रगुप्तजी की तपोभूमि चित्रगुप्तधाम अंकपात, उज्जैन के निर्माण में सहयोग देने हेतु हार्दिक अपील ।
सृष्टि रचियता भगवान बह्मा के आज्ञानुसार भगवान चित्रगुप्तजी ने अवंतिका नगरी जिसे वर्तमान में उज्जैन के नाम से जाना जाता है, जहाँ भगवान चित्रगुप्तजी ने तपस्या करके देवीय शक्तियाँ प्राप्त की थी, किवदन्तियों एवं पदमपुराण के अनुसार ऐसा माना जाता है कि यह वहीं स्थान है जहां धर्मराज के नाम से एक छोटा मंदिर बना हुआ था, अब वह एक विशाल मंदिर का रूप ले रहा है इस मंदिर में सभा मण्डल 34 ग 75 वर्ग फीट का बना हुआ, इसका विस्तरीकरण चल रहा है, वर्तमान में यह सभा मण्डल 75 ग 165 वर्ग फीट का बनाया जा रहा है, इसमंे बेसमेंट का काम लगभग पूर्ण हो रहा है । अब चित्रगुप्तजी की मूर्ति के सामने तल मंजील पर कार्य प्रारंभ होने को है इस कार्य है सभी बन्धुओं एवं माताओं, बहनों से सहयोग एवं आर्शिवाद की आवश्यकता है ।
अपीलकर्ता -
आनन्द मोहन माथुर (अध्यक्ष)
राजेन्द्र श्रीवास्तव (कार्यकारी अध्यक्ष)
दिनेश श्रीवास्तव (प्रबंध न्यासी)
सुरेन्द्र भटनागर (सचिव) एवं
सभी न्यासी ट्रस्टीगण
श्री चित्रगुप्तधाम के सभा मण्डप के विस्तारीकरण हेतु दानदाताओं की सूची |
|
(1) श्री आनन्द मोहन माथुर, इन्दौर | 2,00,000/- |
(2) श्री चन्द्रमोहन श्रीवास्तव, सुखलिया इन्दौर | 1,50,000/- |
(3)डाॅ. यू.एस. निगम, बाम्बे | 1,00,000/- |
(4)श्री एस.पी. श्रीवास्तव विवेकानन्द, उज्जैन | 51,000/- |
(5)श्री सुरेन्द्र भटनागर फ्रीगंज, उज्जैन | 44,000/- |
(6)डाॅ. जितेन्द्र भटनागर फ्रीगंज, उज्जैन | 15,000/- |
(7)श्री गणेशप्रसाद निगम, 4/1 संतरामसिंधी काॅलोनी, उज्जैन | 12,000/- |
(8)श्री कृष्णमंगलसिंह कुलश्रेष्ठ, भारतीय ज्ञानपीठ, उज्जैन | 11,000/- |
(9)श्रीमती लक्ष्मी दिनेश श्रीवास्वत इन्दिरानगर, उज्जैन | 11,000/- |
(10)श्री जगदीश श्रीवास्तव इन्दिरा नगर, उज्जैन | 5555/- |
(11)श्री कैलाशचन्द्र निगम, उज्जैन | 5000/- |
(12)श्री सुरेन्द्र कुमार कुलश्रेष्ठ, उर्दूपुरा, उज्जैन | 5000/- |
(13)श्रीमती आशा राजेन्द्र श्रीवास्तव ऋषिनगर, उज्जैन | 5000/- |
(14)श्रीमती मीरा निगम लोदी मोहल्ला, इन्दौर | 5000/- |
(15)श्री गगन जगदीशचन्द्र श्रीवास्तव विवेकानन्द काॅलोनी, उज्जैन | 5000/- |
(16)श्री गुप्तदान | 5000/- |
श्री चित्रगुप्त चालीसा
श्री चित्रगुप्तजी की आरती
आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।
विद्या-वारिधि, बुद्धि-उजागर ।।
‘चित्रगुप्त’ शुभ नाम तुम्हारा,गावत वेद विदित संसारा ।
है अधीन तव जीव चराचर,आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।।
पाप पुण्य कर जग का लेखा, राखन-हार न तुम सब देखा ।
नित भगवान करत बहुत आदर, आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।।
नेति-नेति श्रुति कहत पुकारी, महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
प्रेम, दया, करूणा के सागर, आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।।
दाहिनी कर लेखनी विराजे, बायें कर पुस्तक छवि छाजे ।
सोहत तिलक ललाट मनोहर, आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।।
जो नित ध्यान तुम्हारों लावे, जन्म मरण बन्धन छुट जावे ।
निश्चय पार होइ भव -सागर, आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।।
आप पिता हम बालक सारे, हैं तुम्हरे सब भाँति सहारे ।
क्षमिय सकल अपराध कृपाकर, आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।।
मांगत वर ‘‘शैदा’ कर-जौरें, बार-बार करि नाथ निहोरे ।
दीजै मुक्ति दया कर, आरति श्रीयुत सब गुण आगर ।।